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________________ शब्दार्थ| मिथ्यादृष्टि स० सममिथ्यादृष्टि त तहां जे. जो स. समदृष्टि ते० वे दु० दोपकार के अ० असंयति सं० संयतासयति त० तहां जे. जो सं० संयतासयति ते. उनको ति० तीन कि० क्रिया तं. वह ज जैसे आ० आरंभिकी प०पारिग्रहिकी मा० मायाप्रत्ययिकी अ० असंयति को च० चार मिः Ro3:02 मना रिया ? गोयमा ! णोइणटे समढे । सेकेणट्रेणं भंते ? गोयमा ! पांचंदिय तिरिक्ख जोणिया, तिविहा प० तं० सम्माद्दट्ठी, मिच्छद्दिट्ठी ! सम्ममिच्छट्ठिी, तत्थणं जे ते सम्माट्ठी ते दुविहा प०तं. असंजयाय, संजयासंजयाय, तत्थणं जे ते संजयासंजया तेसिणं तिण्णि किरियाओ कजति, तंजहा-आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया. असंज 388 पंचांग विवाह पण्णत्ति (भवगती) सूत्र" भावाथ पहिला शतक का दूसरा उद्देशा छोटा शरीरको अपनी २ अवगाहना जैसे कहना. विकलेन्द्रियादिक को प्रक्षेप आहार होता है ॥ ११॥ तिर्यंच पंचेन्द्रिय नारकी जैसे कहना. परंतु क्रिया में जो भेद हैं सो बताते हैं. अहो भगवन् क्या सब तिर्यंच पंचन्द्रिय सरिखि क्रिया वाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं हैं. किस कारन से ? तियच पंचेन्द्रिय के तीन भेद, सम्यक दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, व सममिथ्यादृष्टिः उस में जो समदृष्टि हैं उनके दो भेद असंयति व संयतासंयति उस में जो संयतासंयति हैं. उनको तीन क्रिया लगती हैं. १ आरंभिकी, २९७ पारिग्रहिकी व ३ मायाप्रत्यायिकी, असंयतिको चार, सममिथ्यादृष्टि व मिथ्यादृष्टी को पांच २ क्रियाओं कही
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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