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________________ मा + अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 488 तं जइणं मोगरपानी जक्खो इहसणिहि तेहोति सेणं किं मम एएरूचे आवइया पाविजयामाण पासेति, तेणं णत्थिणं मोगरपानीजक्खे, इहं सणिहिते मुच्चत्तणं एस कट्टे ! ॥१६॥ तत्तेणं से मोग्गरपाणिजक्खे अज्जुणमालाग्गस्स अयमेव अज्झत्थियं जाव वियाणं अज्अणयस्स मालागारस्स सरिरगं अणपविस्सइ.२त्ता तडतड तस्स बंधणाई छिदंति, तंपलसहस्स णिप्पणं अयोमयं मोग्गरं गिण्डइ२ ता, तेइत्थिसत्तमे छपुरिसे घाएई ॥ १७ ॥ तत्तेणं से अज्जुणए भालागारे मोग्गरपाणी यखणं अणाइटे समाणे रायाहस्स णयरस्स परिपेरंतेणं कल्लाकल्लिं छइथि सत्तमे पुरिसे मोगार पानी यक्ष यहां सानिध-नजदीक होते तो वे किस प्रकार मेरी यह अवस्था होती हुई सकते, इस लिये नहीं है यह मोगार पानी यक्ष यहां सानिध जो मुझे छोडावे, यह तो प्रतिमा तो काष्ट हैलकडा है ॥२६॥ तब वह मोगार पानी यक्ष अर्जुन माली के उक्त अध्यवसाय को जानगया, उसही वक्त अर्जुम माली के शरीर में प्रवेश किया, प्रधेश कर उन बन्धन को शीघ्र तोडडाले और वह हजार पलके वजन वाला मुद्गल, उठाकर उस अपनी स्त्री को और उन छही पुरुषों को यों सातों को मारडाले ॥ १७ ॥ तब अर्जुन माली मोगर पानी यक्षके आधिष्टता करके राजगृह नगर के बाहिर आस पास फिरता हुवा. वक्तो. 4848 पटम-वर्गका तृतीय अध्ययन 4988+ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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