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, अहमांग-अंतगड दशांग सूत्र है-428
* षष्टम्-वर्ग * जइण भंते ! छट्ठस्स उक्खेवओ, णवरं सालस्स अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा-मकाई, विकम्मे, चव; मोगरपाणिय, कासवे ॥ खेमते, धितिधरे चेव, कइलासे, हरिचंदणे ॥ १ ॥ वीरत्त, सुंदसणे, पुणभदे तह सुमणभदे। सुपइट्टि,मिहत्ति, अतिमुत्ते, अलख अज्झयणाणंतु सोलसयं ॥ २ ॥ जति सोलस्स अझयणा पण्णत्ता, पढमस्सणं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पग्णत्ते ? ॥॥ एवं स्खलु जंबु ! तेणं कालणं तेणं समएणं रायगिहे णगरे, गुणसिलए चइए, सेणिएराया ॥ १ ॥ तत्थणं मकाई णाम गाहाबई
यदि अहो भगवान ! छठा उक्षेप,विशेषमें इस वर्ग के सोले अध्याय कहे हैं; उन के नाम-7 मकाइ गाथा पतिका,२ वीकर्म गाथापीतका, ३ मोगर पानी यक्षका(अर्जुन मालीका) काश्य गाथापति का,५ क्षेप गाथापति का, ६वृतिधर गाथापति का, ७ कैलाब गायापति का ८ हरीचंद गायापति का, २ वीरक्त गाथापति का, ११० सुदर्शन गाथापति का, ११ पूर्णभद्र गाथापति का, १२ मुमनभद्र गाथापति का १३ सुप्रति गातापमि का, १४ मिहती गातापनि का, १५ अतिमुक्त कुमर का और १६ अलख राजा का वह १७ अध्ययन के नाम जामना ॥ २॥ यदि छठे वर्ग के सोले अध्ययन कहे तो अहो । भगवान ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ॥२॥ यों निश्चय ह जम्बु ! उसकाल उस समय में राजगृहर
48:04 षष्टम वर्गका प्रथम अध्ययन
अर्थ
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