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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिरी gh
रायाजाए महया जाय विहरंति ॥ ६१ ॥ तएणं से गयसुकमालंरायं अम्मापिमरो एवं वयासीभणजाया ! किं दलयामो? किं पयच्छामो? किं वातेहियइच्छिए? समत्थे? ॥ ६२ ॥ तएणं से गयसुकुमालस्स णिक्खमण जहां महावलस्स णिक्खमणा तहा जाव समंति ॥ ६३ ॥ तएणं से गयसुकुमाल जाव अणगारेजाए इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी॥६४॥तएणं से गयसुकुमाले अणगारे जंचव दिवसं पव्यइए तस्सेव दिवसस्स पव्वरहकालसमयंसि जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तणेव उवागच्छइ २त्ता अरह
अरिट्ठनमिस्स तिक्खुत्ता आयाहीणं पयाहीणं वंदति नमंसति एवं बयासी इच्छामिणं लगे ॥ ६५ ॥ तव गजसुकुमाल राजा को उन के माता पिता हाथ जोडकर यों कहने लगे-कहो पुत्र ! क्या देवें ? क्या तुम चहाते हो ? क्या तुमारी इच्छा है ? तुम क्या करने समर्थ हो ? ॥ ३२ ॥ तब गमसुकुमालने तीन लाख द्रब्य श्री भंडार से ग्रहण करने का कहा यावत दिक्षा उत्सव का कथन जैसे भगवती सूत्र में महाबल कमर का कहा तसा मव यहां जानना यावत् दीक्षा धारन की ॥६शतव बह गजसकमाल अनगार हवे यावत् र्यासमितीत गुप्त ब्रह्मवारी बने ॥१४॥तव गजमकमाल अनयारने जिस दिन दीक्षाधारन की उस हो दिन मध्यान कालमें जहां अरिहंत अरिश नमीनाथ थे तहां आये, आकर अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ को तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिराकर वंदना नमस्कार कर यों कहने लगे
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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