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________________ १ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अयोलक ऋषिजी + यत्रणा कविसीसगमंडिया, सुरमा, अलकापुरिसंकासा, पमुदिय भकिलिया, पबक्सदेवलोगभूया, पासादिया, दरिसगिजा, अभिरूवा पडिरूवा ॥ ५ ॥ तीसेणं वारवतिय णयरिए बहिया उत्तर पुरिच्छमे दिसिभाए एत्थणं रेवते नामं षवत्ते होत्था वण्णओ ॥ ६ ॥ तत्थगं रेवते पवत्ते गंदणवणे नाम उजाणेहोत्था वण्णओ ॥ ७ ॥ सूरपिए.. नामं जक्खस्स जक्खायतणे होस्था, पोराणे सेण एगेणं वणसंडणं, आसोगवरपायचे, पुढविसिला पट्टए ॥८॥ तत्थणं वारवती एणयरीए कण्हे गाम वासुदेवराया परिवसई, वाले लोक सदैव प्रमुदित-हर्षवन्त थे, वह नगरी एक क्रीडा करने के स्थान जैसी मनोरम्प थी, प्रत्यासाक्षात् देवलोक जैसी थी, चिच को प्रसन्न करनेवाली, देखने योग्य, अभी रूप प्रतिरूप थी ॥५॥ उसे द्वारका मगरी के बाहिर उत्तर पूर्व दिशा के मध्य ईशान कौन में यहां रेवती नाम का पर्वत था, वह भी वर्णन करने योग्य था, ॥ ६ ॥ उस रेवती पर्वत के पाप्त नन्दन बन नाय का उद्यान था, वह भी वर्णन करने योग्य था ॥ ७॥ तहां सूरप्रिय नाम के यक्ष का यक्षायतन (देवालय) था, वह बहुत पुराना था, एक बनखण्ड-बगीचे कर पैष्टित था, उम के मध्य आशोक वृक्ष था वह मुशोभित था, उस के नीचे पृथ्वी सिलापट्ट था ॥ ८॥ तहां द्वारका नगरी में कृष्ण नाम के वासुदेव राजा राज्य करते थे, वे महा। प्रकाशक रानाबहादुर लाला सुखदेवसहस्यमी ज्यामसादजी. - जाए - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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