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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी र
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पज्जवासंति, एवं वयासी-जइणं भंते समणेणं भगक्या महावीरेणं आदिकरेणं जावा संपेताणं सत्तमरस अंगरत उवासगदसाणं अयम? पण्णत्ते ॥ अट्टमस्सणं भंते अंगस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबु ! 31. समणेणं जाव संपत्तणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठवग्गा पण्णत्ता॥३॥ जइणं भंते.! समणेनं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगरस अंतगडदसाणं अट्ठवग्गा पण्णत्ता, पढमस्सणं भंते ! वग्गरस अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं कतिय अज्झयणा
पण्णत्ता ? एवं खलु जंबु समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पर्युपासना-सेवा करते हुये गो बाले-यदि अहो भगान! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी धर्मकी आदी के करता यावत् मुक्ति पधारे उनोंने सालवा अंग उपाशक दशा का उक्त अर्थ कहा वह मैंने श्रवण किया,
अब आगे आना अंग अंतकुल दशांग का श्रमण. यावत् युक्ति को प्राप्त हवे उनोंने क्या अर्थ कहा इयों निश्चय हे जम्बू ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी यावत् मुक्ति पधारे उनोंने आठवा अंग
अंतकृत दशा के आठवर्ग कहे हैं ॥३॥ यदि अहो ग धमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी यावत्
मुक्ति पधार नोंने आठवे अंग अंतगड दशा के आठ वर्ग कहे हैं, तो अहो भगवन् ! प्रथम वर्ग के कितने र अध्ययन कहे हैं ? यों निश्चय, हे जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोंने आठवा अंग अंतराई दशा
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प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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