________________
34880
तिहिं मासेहिंय, दसहिय दिवसेहि, आहासुतं जाव आराहेत्ता ॥ २ ॥ दोच्चाते पडिवाडाए, चउत्थ करति २, विगइ वजं पारेति ॥ जहा रयणावली तहा एत्थवि चत्तारी परिवाडितो, पारणा तहेर ॥ ३ ॥ चउण्हं कालो संवच्छरमारो सहिय दिवसा, सेसं तहेव जब सिद्धा॥ ४ ॥ निक्खवर छट्ठभं अज्झयणं सम्म ॥८॥६॥ एवं वीरकण्हावि, णवरं महालयं सबतो भदं तबो कम्मं उत्रसंपजित्ताणं विहरति ॥ तंजहा चउत्यं करेति २त्ता सव्व काम छटुं करेइ,मन्त्र काम०, अट्ठमं करेइ२,सन्यकाम,
दसमं करोति २ त्ता सव्वकामगु०, दुवालसमं करेद, सधकामगु०, चादसमं करइ, भक्तादि सर्व तप उक्त विधी प्रमाणे किया. इस में इताविप पारने में पांचों विगय का त्याग कियाई है तोसरे में लेप लगे ऐसे आहार का त्याग किया और चौथी लडके व पान में आयोयल किया
इस प्रकार चारों परिवाडी जानना. जिस की पारना को विधी २:वली तप मैसी जानना ॥ चारों परवाडी का काल-एक वर्ष एक महीना दश दिन, शेष कथन तैसा ही जानना यावत् सिद्ध हुई है। इति अष्टम वर्ग का षष्टम अध्ययन संपूर्ण ॥ ८ ॥ ६ ॥ ऐसे ही वीर कृष्णः राणी का मी जानना. यावत् + दीक्षा धारन कर विविध प्रकार के तप करने लगी, इस में इतना विशष बडी सनतोभद्र प्रतिमा रूप तप
कर्म अंगीकार कर विचरने लगी-तद्यथा-चौथ भक्त कर सर्व प्रकार के रस का उपभोग कर पारना [१ किया, ऐसे ही-छठ भक्त कर पारना किया, अठम भक्त कर पारना किया, दशम भक्त कर पारना ।
अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 4882
अषष्टम-बगेका सक्षम अध्ययन 4
2
424
*
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org