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________________ अर्थ - अष्टमांग-अंतगड दशांग मूत्र 40848 परिवाडीए-चउत्थं करेति २त्ता विगइवज पारेइ २त्ता, छटुं करेइ, विगइवजं पारेइ, एवं जहा पढमाए परिवाडीए तहा वीआएवी णवर सव्वत्थ पारणए विगइवजं पारेति जाव आराहिया भवइ ॥ ८ ॥ तयाणं तरंचणं तच्चा परिवडीए चउत्थं करेइ अलवाडं पारति जाव आराहिआ भव ॥ ९॥ एवं चउत्थाधि परिवाडी नवरं सव्व पारणाइ आयंबिलं पारइ २त्ता सेसं तंचेव ॥ (गाथा) पढमंमि सब काम । वरवाडी अंगीकार की-उथ भक्त किया करके, विगय । दूध, दही, घी तेल मिठाइ) छोडकर बाकी आहार से पारना किया. ऐसे ही-छठ भक्त कर पारना किया, ऐसे ही अष्टम भक्तकर पारना किया, फिर भाठे वेले किये, उन का पारना भी विगय छोडकर किया, फिर चौथ भक्त से लगाकर चौतीम में भक्त तक चडता तप किया, फिर चौंतीप छठ भक्तकर पारना किया, फिर चौतीस भक्त से लगाकर चौथ भक्त तक उतरता तप किया, फिर आठ छट भक्त किये, अष्टम भक्त छठम भक्त और चौथ भक्त कर पारना किया, यों इस दूसरी परीपाटी तपका पारना सविनय रहित किया॥८॥फिर तीसरी परिपाट, भी इस ही प्रकार की विशेष इतना कि-इस में तप के पारने सब निर्लेप (जिस का लेप न लगे जो *प्रवाही-पतला पदार्थ न हो) उस से पारना सिया ॥९॥ चौथी परीपाटी भी इस ही प्रकार तप किया, जिस तप के पारने में आयविज्ञ (एक प्रकार का मुंजा हुवा धान्य. पानी में भीजोकर खाकर ) - अषष्टम-वर्गका प्रथम अध्ययन 42 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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