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________________ सत्र एकादशमांप-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध48+ जाव समुदरवभूयं पिवकरेमाणीओ सालाटवीए चोरपल्लीए सवओं समंताओ लोए माणीओ २, अहिंडमाणीओ २, दोहलं विणंति, तंजइ अइं अहंपिव हुर्हिणाइ णियग सयण संबंधि परियणमहिलाई अण्णेहिं सालाडवीए चोरपलीए सव्वओ समंताओ. लोएमाणीओ २ आहिंडमाणीओ २, दोहलांवणिज्जामि? तिकटु, तंसि दोहलंसि अबणिजमाणसि जाव झियामि ॥ २२ ॥ तएणं से विजय चोरसेणवइ खंदसिरीभा. रियं उहय जाव पासइ एवं क्यासी-किण्हं तुम्हं देवाणुप्पिए ! उहय जाव ज्झियासि? ॥ २३ ॥ तएणं सा खंदसिरी मारिया विजयं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! से चलती हुई सालावटी चोर पल्ली के मर्व दिशी विदिशी में देखती हुई गमन करती हुई दोहला-मनोर्थ पूरण करती है, उसमाता को धन्य है. मैं भी कभी बहुत ज्ञाती गौत्रीयों की स्त्रीयों दास दाप्तीयों था अन्य स्त्रीयों के साथ सालाटवी चोर पल्ली के सर्व दिशी विदिशी में देखती हुई गमन करती हुइ.विचरूंगी. दोहला पूर्ण करूंगी? इस प्रकार विचार करती हुई उक्त दोहला अपना पूर्ण होता हवा नहीं देखकर यावंत आर्त ध्यान ध्याने लगी ॥ २२॥ तब वह विजय चोर सेनापति खंदश्री भार्या को आर्त ध्यान ध्याती हुई देखकर यों कहने लगा-हे देवानुप्रिय ! तुम किस कारन आर्त ध्यान ध्यारही हो ? ॥२३॥ तब वह खंदश्री विजय चोर सेनापति से यों कहने लगी-यों निश्चय अहो देवानुप्रिय ! मेरे गई को 18 दुःख विपाक का-तीसरा अध्ययन-अमग्गसेन चोर का OYO । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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