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4. अनुवादक-पालग्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
संभग्गमहियमत्तं करेइ २त्ता अवउडगबंधणं करेइ २त्ता एएणं विहोणं बझं अगावेइ ॥ ५८ ॥ एवं खलु गोयया ! उज्झिपर दारए पुरापोराणाणं जा पञ्चणुभवमाणे बिहरइ ॥ ५९ ॥ उज्झरणं भंते ! दारए इओकालमासे कालंकिवा कहिं गच्छर्हिति कहिं उक्वजिहिंति ? एवं खलु गोयमा ? उझरतदारए पणवीसं वालाई परजाऊं पाल इ२त्ता अजेवत इभागावसेस दिवसे सलामिणकए समाज काउंमासे बालकिया इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जरइयत्तार उववजिहिंति सेणं तओं अणंतरं उहित्ता
इहेब जंबूद्दीवे २ भारहेबासे बेयगिरिपायमले वाणरकूलसि बाणरत्ताए उववजिहिति, उलटी मुस्कों मे बन्धन बन्धो इस प्रकार राजाकी आज्ञा नायकर चाकर पुरुषोंने जस ही प्रकार उसका किया. ॥५॥ यो निश्चय हे गौतम ! उ.शा वाला पुराना पूर्वजन्मोगामित कर्मों को भगवना विचर रहा है।५९॥ अहो भगन् ! उज्झिन कुमार यहा मे काल के अनर काउ करके कहां जायगा कहां उत्पन होगा ? यों निश्चय हे गौतम ! उशिन वालक पचीस वर्ष का उत्कृट आयुष्य पालकर आज हो दिन के तीसरे प्रहर में शूली से शरीर भेदाया हुया काल के अवसर काल पूर्ण करके इस हा रत्नप्रभा पृथ्वी में मेरीयेपने उत्पन्न होगा. वहां से अन्तर हित निकलकर, इस ही जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में बैत.ढ्य पर्वत के पास बन्दर के कुल में इन्दरपने उत्पन्न होगा, वहां बाल्यावस्था से मुक्त हो यौवन अवसा को प्राप्त हो तिर्यच
प्रकाशक-गजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्व मलदजासी,
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