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________________ श्री अमोलक पिजी कामज्झियाए गाणियार सहिं उरालाइं जाव विहरइ ॥ ५४ ॥ तएणं से उरिझयदारए कामज्झयाए गणियाए गिहाओ णिच्छुभावे समाणे कामज्झियाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गट्टिए अज्झविवणे अण्णत्थकत्थइ सुयंच रतिंच धितिंच अबिंदमाणे तच्चिते तभ्मण्णे तल्ले तदझवसाणे तदवार उत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणा भाविए कामज्झि. याए गणियाए बहणि अंतराणिय छिद्दाणिय विवराणिय पडिजागरमाणे २ विहरइ ॥ ५५ ॥ तएणं से उज्झिएयदारए अण्णयाकयाइ कामज्झियं गणियं अंतरं लभेइ कामझियं गाणयं गहि रहस्सइगं अणुप्पविसइ २ त्ता कामज्झियाए गणियाए सद्धि माय उदार प्रधान भोग भोगवता विचरने लगा ॥५४॥ ता फिर वह उज्झित बालक काम द्वग गणिका के घर निकले बाद कामदज गणिका से मूछन हुवा गृदीवना अति ही आसक्तवना अन्य किसी भी स्थान रति-सुख नहीं प्राप्त करता हुवा, धृति-धैर्यपना नहीं धारन करता हुवा, उस हा कामदन गणिका को अपने चित्त में रटन करता हुआ, उसी पर लगाता हुवा उत्तीकी गवेषना करता हुवा, वही अध्यवसाय उसकी प्राप्ती के उपाव देखता हुवा, फिर कब मिलेगी इसप्रकार उसी में अपना सर्व स्वयं अर्पनकर उसकी भावना भावतावा क्षीण मात्रभी नहीं भूलताहुवा, कामना गाणकाकी प्राप्ति के लिये राजा का विरह राजाका परिवार सीपाइ-रक्षकादि का विरह बहुत प्रकारसे देखता हुवा विचरने लगा ॥५५॥ नवाई .प्रकाशक-राजावहादुर लाला गुषहरमहायजी घालाप्रसादजी. अर्थ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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