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सूत्र
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सरीर वेयणा पाउब्भूया उज्जला जाव जलंता, जप्पपिभिचणं मियापुतदारए मियादिव कुछिसि गम्मत्ताए उबवण्णे तप्पभिचणं मियादेवी विजयस्तखत्तियरस अट्ठा अकंता अपिया अमण्णा अमणामा जाय विहोत्था ॥ ५८ ॥ तएणं तीसेमियादेवीए अण्णयाकयाइं पुत्ररत्तावरतकालसमयंसि कुटुंब जागरियाए : जागरमणीए इमे अज्झथिए ३ समुप्पम्ने एवं खलु अहं विजयखत्तियस्स पुकिं इट्ठा ₹ विसासिया अमयाँआसी; जप्पभिइंचणं ममं इमेगन्भे कुच्छिसि गम्भत्ताए उवणे तपभचणं विजयरस खतियस्स अहं अणिट्ठा ३ जाव अमणामा जायाकि कूक्षी में पुत्रपने उत्पन्न हुआ, तब मृगावती देवी के शरीर में वेदना प्रगट हुई, वह बेदना अति उज्वल जाज्वल्यमान सहन करना अतिदुक्कर ।। जिस दिन से मृगावती के कुक्षी में गर्व उत्पन्न हुवा था उस दिन से मृगावती देवीं विजय क्षत्री राजा को अनिष्ट लगने लगी, प्रीति का नाश हुवा, मन को अनगमती लगी, मन को सुहाती नहीं, ॥ ५८ ॥ तब मह मृगावती देवी अन्यदा किसी वक्त आधी रात्रि में कुटुम्ब जागरना जागती हुई इस प्रकार अध्यवसाय उत्पन्न हुवा - यों निश्चय में विजय क्षत्री राजा को पहिले इष्टकारी { प्रियकारी मनोज्ञ थी मेरे नाम को वे हृदय में धारन करते थें, में उन को विश्वास पात्र थी, बल्लभयी, - परन्तु जिस दिन से मेरे यह गर्भ कुक्षी में उत्पन्न हुवा है उस दिन से विजयक्षत्री राजा को में अनिष्ट
48+ एकादशमांग- विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध 48
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4 दुःख विकका पहिला अध्ययन-मृगापुत्रका
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