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________________ ११२ 4अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी" तएणं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिगय जीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ २६ ॥ तएणं से सुबाहुकुमारे अण्णयाकयाइ चउदरसट्ठमुद्दिट्ठ पुण्णमा सिणीसु जेणेव पोस्हसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पोसहसालं पमज्जइ २ त्ता उच्चारपासवणं भूमिपडिलेहे २ त्ता दब्भसंथारं संथरइ २ त्ता दब्भसंथारं दुरूहइ २ त्ता अट्ठमंभत्तं गिण्हइ २ त्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिएपोसहं पडिजागरमाणे विहरइ ॥ २७ ॥ तस्स सुबाहुस्सकुमारस्स पुव्वरत्तवरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्त, इमेयारूवे अज्झथिए समुपप्पणे-धण्णापां ते गामागरणगर जाव . * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वाला प्रसादजी * णो पासक साधुका भक्तावना, जीव अजीव आदि नवतत्वका जान हुआ यावतू चउदह प्रकार का दान प्रतिलाभना हुआ निचरने लगा ॥ २६ ॥ तब सुबाहुकार अन्यदा किसिवक्त तुर्दशी अमावश्या अष्टमी पूर्णिमाके दिन जहां पोषधशाला है तहां आया. आकर, पोषधशालाको रजोहरणसे पूंजकर उच्चार-बड़ीनीत पासण लघुनीत परिठायनेकी भूमीका पर्डिलेही, पडिलहकर दार्म (पगल) का संथारा विच्छोन बिछाकर दर्भ बंधारे पर बैठकर अष्टमभक्त ( तेलेका तप ] ग्रहण किया, ग्रहणकर अष्टभक्त-तेलेका पोषधवत ग्रहणकर धर्म जागरना जागता हुआ विपरनेलगा॥ २७ ॥ तब उस सुबाहुकुमरको आधारात्री व्यतीत हु धर्म जागरणा जाग ते हु इस प्रकार अध्यवसाय उत्पन्न हुआ धन्य है उस ग्राम नगर १ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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