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________________ wwwwwwnaramnonvar एकादशमांग-विपाक सूत्र का द्वितिय श्रुतस्कन्ध इहेव जंबूद्दीवे २ भारहेवास हथिणाउरे णामंणयरे होत्था रिद्धीत्थमिथ ॥ १३ ॥ तत्थणं हथिणाउरे णयरे सहमेणाम गाहावइ परिवसइ अड़े ॥ १४ ॥ तेणं कालणं । तेणं समएणं धम्मघोसाणामं घेरा जाइ संपण्णा जाव पंचहि समणसएहिं सद्धिं संपरि बुडा पुवाणु पुर्दिब चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिणाउरे "यरे जेणेव सहसंबवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अहा पडिरूवं उग्गहं उगिण्णइ २त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे हिरई ॥ १५ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतवासी सुदत्तेणाम अणगारे, उराल जाव तेयलेसे मासेमासेणं निश्च गौतम ; उस काल उस समय में इस ही जम्बू द्वीपनाम के द्वीप में भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर नाम का नगर ऋद्धि स्मृद्धि संयुक्त था ॥ १६ ॥ उस हस्तिनापुर नगर में मुमुखनाम का गाथापति रहता था। वह ऋद्धिवंत था ॥ १५ ॥ उस काल उम समम में धर्मघोषनाम के स्थविर जाति संपन्न कुलसंपन्न यावत पाँचसो साधुओं के साथ परिवरे हुवे, पूर्वानु पूर्वानु चलते हुवे ग्रामानुग्राम उल्लंघते हुचे सुख सुख से विचरतें जहाँ हस्तानपुर नगर का जहां सहश्रम्ब उध्यान था तहां आये आकर यथा प्रतिरूप साधु को कल्ये बैमा अवग्रह-आज्ञा ग्रहणकर संयम तपकर अपनी आत्मा को भवते हुवे विचरने लगे ॥१५॥ उम काल उस समय में धर्मघोष स्थरवर के अन्तेवासी मुदत्तनाम के अनगार औदर- प्रधान तप के करनेवाले यावत् सुख विपाकका-पहिला अध्ययन-मुबाहु कुमारका ' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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