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________________ : सूत्र सूत्र का द्वितिय श्रुतस्कन्ध प्पभिइयो मुंडे भवित्ता, अणाओ अणगारियं एवइया, णो खलु अहं तहा संचाएभि मुं. भक्त्तिा आगाराओ अणगारिय पव्वत्तिए, अहणं देवाणुप्पिया अंतिए पंचाणुब्बइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामि ? अहामुहं देवाणुप्पिया ! मपडिबद्धं करेइ ॥ १० ॥ तएणं से सुबाहु कुमारे समणस्स भगवआ महावीरस अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिखावश्यं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजइ २त्ता, तमेव दुरुहइ २ त्ता जामवदिसिं पाउब्भूया तामेवदिसं पडिगए ॥ ११ ॥ तेण कालेणं तेणंसमएणं जेटे इंदभूई जाव एवं वयासीअहोणं भंते ! सुबाहु कुमारे छोडकर साधुपना अङ्गीकार करते हैं परन्तु निश्चय में तैसा मुण्डितहो घर छोडकर अनगार होने साधु-चनने को समर्थ नहीं हुं में तो देवाणुप्रियाके पास पांच अणुात सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकारका जो गृहस्थका धर्म है उस को अङ्गीकार करणाचाता? भगवंत कहा हे देवाणु प्रया! जिस प्रकार सुख हो उस प्रकारं करो धर्म कार्य में प्रतिबन्ध-ढीलमतकरो ॥ १० ॥ तव सुबाहुकुमार श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी के पास पांच अनुव्रत सात शिक्षाबत बारे प्रकार का श्रावक का धर्म अङ्गीकार किथा, अंगीकार कर तैसे ही थारुढ हो जिस दिशा से आयाथा उस दिशा पीछा गपा ॥ ११ ॥ उस काल उम समय में 'श्रमगवंत के बडेशिष्य इन्द्रभूति-गौतम स्वामी जी भगवंत को वंदना नमस्कारकर यों बोले-अहो इति । सुखविपाक का पहिला अध्ययन सुधा हुकुमार का अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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