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42 एकादशमांग-विपाक सूत्रका द्वितीय श्रुत्स्कन्ध82
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तत्थ केयवयणमाला पियरस जक्खस्स जक्वायतणे होत्था, दिव्वे ॥ ५ ॥ तत्थणं हत्थीसीसे णयरे अदीणसत्तूणामं रायाहोत्था, महया ॥ ६ ॥ अदीणसत्तुस्सरण्णो धारणापामोक्खाणं देवीसहस्सं उरोहेयात्री होत्था॥ ७ ॥ तएणंसा धारणीदेवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंलि वास भवणंसि सीहं सुमिणं जहा मेहजम्मणं, तहा भाणियब्ध, गवरं सुबाहुकुमारं जाव अलंभोगसमत्थंवाविजाणंति २ त्ता अम्मा
पियरो पंचयासायवडिंसगवासायई करेइ २ त्ता अब्भुगय भवणं एवं जहां महव्वल. प्रसिद्धि पाया हुवा था ॥ ५ ॥ तहां हस्तिशीर्ष नगर में अदीनशत्रु नाम का राजा राज्य करता था वह महाहिमवंत पर्वत समान था ॥॥ उस अदीन शत्रु राजा के धारनी प्रमुख एक हजार वीरानीयों थी। ॥७॥ब वह धारनी रानी अन्यदा किसी वक्त पुन्यवंत के शयन करने योग्य भुवन [घर ] में सुख शैय्या में मूती हुई सिंहका स्वपन देखा, जिस प्रकार मेघकुमार का जन्म का अधिकार ज्ञाता मूत्र में
कहा है तैसे यहाँ भी कहना, जिस में इतना विशेष-मुवाहु कुमार नाम स्थापन किया, यावत् संपूर्ण भोग Fभोगपने समर्थ हुवा जानकर उसके माता पिताने पांचसो प्रसाद शिखरबंद कराये, उन पांचसो प्रसादो के.
मध्य में एक अति ऊंचा भुग्न कराया. जिस प्रकार भगवती मूत्र में मावल राजा को पांचसो कन्या +पानीप्राण करानेका अधिकार कहा है तैसेही यहां भी जानना जिस में इतना विशेष-पुष्पचूला प्रमुख पांचसो
में सुख विपाक का-पहिला मध्ययन-सुबाहु
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