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________________ सत्र 48एकादशमांग विपाक सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 4+8+ सुद्धप्पावइ संपरिबुडा, तएणं दत्तस्सगिह तेणेव उवागच्छइ २ ॥ ३८ ॥ तंएण से दत्तसत्यवाहे ते पुरिसे एजमाणे पासइ २ त्ता हट्ठ आसणाओ अब्भुट्ठइ सतकृपयाई अभुग्गए आसणेणं उवणिमंतेइ २ ता ते पुरिसे आसत्थ वीसत्थे मुहासण वरगए एवं वयासी-संदिसंतणं देवाणप्पिया! किं मागमणप्पओयण ? ॥ ३९ ॥ तएणं ते रायपुरिसा दत्तसत्थवाहं एवं बयासी-अम्हेणं देवाणुप्पिया ! तवधूयं कण्हसिरी अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसणंदिस्त जुवरण्णो भारियत्ताए बरेमो, ते जइणंसि देवाणुप्पिया ! जुत्वा पत्तंवा सल्लाहणिजंवा सरिसोवा, संजोगा दिजं उणं देवदत्ता भरिया पुसणंघर को आया ॥ ३८ ॥ तब वह दत्तमार्थवाही उम राज्य परुष को आता हुवा देखकर हर्ष पाया आमन E से खडा हुवा सात आठ पांव सन्मुख गया. बैठने को आसन की आमंत्रणा की, तब यह राज पुरुष उम आसन पर बैठकर मार्गक्रमन के श्रम रहित हुवा, तर उमे दत्तमार्थवाहो कहने लगा-हे देवानुप्रिया : आज्ञा दीजीये तुमारा यहां किल प्रयोजन मे आना हुवा है ? ॥ ३१ ॥ तब वह राज्य पुरुष दत्तसार्थवाही से ऐसा कहने लगा-हे देवाप्रिया ! मैं तुमारी पुत्री कृष्णा श्री की आत्मज देवदत्ता नाम की कन्य को ॐ पुष्पनन्दी युवराज की भार्या के लिये मांगरे आया हूं, इसलिये अडओ देवानु प्रया! यदि तुपारे को यह ॐकार्य योग्य लगता दो,परत तकारी मालुम पड़ता दो, प्रसंशनीय जानाजाता हो, दोनों का एकासा योग्य संजोग हो। दुःखविपाक का नवा अध्ययन-दवदत्तारानी का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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