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________________ -- दलयइ ॥ तओणं. कोडुबियपुरिस जाव उग्घोसइ॥ २० ॥ तओ बहवे विजाय इम एयारूवं उग्धोसेजं तंणिसामेइ २ त्ता जेणेव सोरिदत्तागिहे; जेणेव सोरियमच्छंध तेणेव उवागच्छइ २त्ता बहुहिं उप्पत्तियाहिय ४ इच्छंति सोरियमच्छंधस्स मच्छकंटगं १५० गलाओ पीहरितएवा विसोहित्तएवा णोचवणं संचाएत्ति णीहरित्तएवा विसोहिएत्तएवा ताहेसंता तंतापरितंता जामेवदिसि पाउन्भूया.तंमेवादसि पडिगया॥२१॥तएणसे सोरिय मच्छंधे विजंपडियारणिविण्णे, तेणं दुखणं महया अभिभूए सुक्के जाव विहरइ ॥ २२ ॥ एवं खलु गोयमा ! सोरिय पुरापोराणाणं जाव विहरइ ॥ २३ ॥ सोरिएणं ॥ २० ॥ तब फिर बहुत वैध आदि उक्त उदघोषना श्रवन कर जहां सोरियदत्त मच्छी का घर था जहाँ सोरियदत्त मच्छी था तहां आये, आकर बहुतसी उत्साती की विनीया क्रपीया परिणामीया चारों प्रकार की बुद्धीकर चहाने लगे सोरियदत्त के गले से मच्छका कांटा निकालना, परंतु अनेक उपाव करके भी कांटा, निकाल ने समथन हुवे गला विशुद्ध करसके नहीं तब बहुत से वैधादि थक गये हारगये घबराकर जिस दिशा से आये थे उस दिशा पीछे गये ॥ २१॥ तब सौर्यदत्त मच्छी उन वैद्य के गये बाद । Mदुःखकर अतीही पीडित हुवा सूका भूका मांस रहित हडी का पिंजर चर्म वेष्टित शरीर रहगया । है ॥ २२ ॥ यों निश्चय हे गौतम ! सौरिय पच्छी पूर्व जन्ममें बहुत काल के उपार्जन किये पापकर्म के फल 42 अनुवादक-घालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी + प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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