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________________ १४७ 49एकादशमांग-विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 480 समुददत्तस्स अण्णयाकयाइ कालधम्मुणासंजुत्ते॥१५॥तएणसे सोरियदत्ते दारए बहहिं मिरा रोयमाणे २ समुदत्तस्स णीहरणं करेइ २ ॥ अण्णयाकायाइ सयमेव मच्छंध महत्तरंगत्तं उयसंपजित्ताणं विहरई॥ १६ ॥ तएगं से सोरियदत्ते दारए मच्छंध जाए अहम्मिए जाच दप्पडियाणंदे ॥ १७ ॥ तएणं तस्स सीरिय मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिन्न भत्ति कल्लाकल्लि एगट्ठियाहिं जउणं महागंदिओगाहिति बहुहिं दहगलणहिय दहमलणेहिय, दहमहणेहिय, दहमहणेहिय, दहवहगेहिय, दह रहिय पच्वुले हेय, धर्म प्राप्त दुवा मृत्युपाया ॥१०॥ तब फिर वह सौर्यदत्त बहुत से मित्रादि साथ रुदन करताना सनदानका निहारन मृत्युकार्य-किया, बहुत से लोकीक सम्बन्धी कार्य किय; फिर अप संयं मच्छी का आयाति पना अङ्गीकार कर विचरने लगा ॥१६|| तब फिर वद्द सौर्यदत्त पच्छेप का माल हुका अध पापिष्ट यावत् ककर्म कर आनंद पाने लगा ॥ १७॥ तब फिर सौर्य दत्त मच्डी के बहुत से पुरुष नोकर थे, वह उन कोई सदैव भोजन पानी नोकरी देता था, वे सदैव काष्ट की नावारुड होकर महानदी में प्रवेश करकेद्रह-तला वादि में प्रवेश करके बहुतसी मच्छी आदि ग्रहण करने परिभ्रमण करते, पानी में स मच्छी आदि जल चर जीव को निकालते, कर्दम में मशलते, द्रह आदि को उलीव कर पाती कमी करते, पानीका मथन करते तरुशाखादिकर पानीको डोबला करते,पाल फोडकर पानी निकालते, साफ पानीनिकाल कर तडफडते पच्छादि।। * दुःखविपाकका-आठवा अध्ययन- मौर्यदत्त मच्छी का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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