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सिया मच्छरस तलियाणिया भजिया सोल्लिया उपक्खडावइ २ ता अण्णेय बहवे मच्छरसएय एणिज्जरसएय तित्तररसएय जाव मयूरसएय, अण्णंच विउलं हरियसागं उपवक्खडावेई २ त्ता मित्तस्सरण्णो भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए उवणेइ ॥ १० ॥ अप्पाणा वियण्णं से सिरिए माहणसिए तेसिंच बहुहिं जाव जलयर थलयर खहयर मंसेहिं रसएहिय हरियसागेहिय सोलिहि यतल्लिय भजिय सुरेचद आसायमाणे ४ विहरइ ॥ ११ ॥ तएणं से सिरीएमाणसिए एयकम्मे ५ सुबहु
-विपाक सूत्र का प्रथम श्रतस्कन्ध एकादशी
दुःख विपाक का-भाउमा अध्ययन-सार्यदत्त मच्छी का
१(अनार )के रसकर संस्कार, मच्छी के रसकर संस्कारे, तेलादिकर संस्कारे, तेलादि में सले, अग्नीकर भूमे इस प्रकार मांस को तैयार कर, और भी बहुत से मच्छीयों का रस मच्छीयों का मांस का रम, मृगादि पशु के मांस का रस, तीतरादि १क्षीयों के मांस का रस यावत् मयूरादि को का रस, और भी बहुत हरित काय? शाक भाजी तैयार करके मित्र राजा के भोजन मंडप में भोजन स्थानक में भोग (जेमन) के वक्त आगे कों रखताथा॥१०॥ और आपस्वयं भी वह श्रीप रसोइया उक्त प्रकारका जलचर थलचर खेचर के मांसका मूलाकर उक्त रसों के साथ हरित शाक भाजी के साथ सेक कर भून कर तल कर मदिरादि के साथ अस्पादता हुवाविचारता था ॥१२॥ तब फिर वह श्रीया रमोइया इस प्रकार करतूतकर कूआचरनकर तीस सो [३३००112
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