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१. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अजसुहम्मेणामं अणगारे जाई संपण्णे वण्णओ, चउदसपुब्बी चउनाणोवगए पंचहि अणगार साह सद्धिं संपरिखुडे पुवाणुपुचि चरमाणे जाव जेणेव पुण्णभद्देचेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ ॥ ३ ॥ परिसाणिग्गया धम्मंसोचा निसम्म जामवदिर्सि पाउन्भया तमिवदिसिं पडिगया !!४॥ तेणंकालणं तेणंसमएणं अज्जसुहमरस अंतेवासी अन जंबूणामं अणगारे सत्तुस्सेहे
जहा गोयमसामी तहा जाव झाणकोट्टोवगए विहरइ ॥ ५ ॥ तएणं अज जंबूणाम समय में श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी के शिष्य, आर्य सुधर्मा स्वामी नाम के अनगार-साधु उत्तम जातिवन्त इत्यादि गुनों का वर्णन उववाइ स्त्र से जानना, चउदे पूर्व के पाठी चार ज्ञान सहित पांच सो
माधुओं के साथ परिवरे हुवे पूर्वानुपूर्व चलते हुवे यावत् जहां पूर्णभद्र नाम का चैत्य, गीचे युक्त था. पतहां पधारे, यथा प्रतिरूप साधु को कल्पनीय वस्तु का अवग्रह-आज्ञा ग्रहणकर संयम तपसे आत्मा भावते,
विचरने लगे ॥ ३ ॥ परिषदा दशनार्थ आई, धर्मकथा-व्याख्यन श्रवण कर अपधारकर जिस दिशा से आई थी, उसदिशा पीछीगइ ॥ ४ ॥ उस काल उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी के शिष्य आर्य जम्बू स्वामी नाम के अनगार-साधु सात हाथ के ऊंचे यावत् जैसे गौतम स्वामी का भगवती सूत्र में वर्णन चला है तैसे यावत् ध्यान कोष्टक में धर्म ध्यान ध्याते हुवे विचर रहे थे ॥ ५ ॥ तब वे आर्य
रकाशक-गाजारहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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