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* अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
सूरादेव जाव विहरति ॥४॥ एवं देवो दोच्चंपि तच्चपि भणंति, जाव ववरोवज्जास ॥५॥ तएणं तस्स सुरादेवस्स तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्तसमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ४ समुप्पन्ने अहोणं इमे पुरिसे अणारीए जाव समायरंती,जेणे ममं जेटुं पुत्तं जाव कणीयासं जाव आइचंति, जेविय इमे सोलरोगायके तेविय ईछंति ममसरीरगंसि पविखवित्तए, तं सेयं खलु मम एवं पुरिसं गिव्हीत्तए तिकटु, उढाएतिए सेविय आगासे उप्पईए. तेणयखंभे आसादेति, महता सद्देणं कोलाहलेकए ॥ ६ ॥ तएणं
साधन्नाभारिया कोलाहल सईसोचा निसम्म जेणेव सुरादेव समणोवासए तेणेव सरादेव श्रानक देवका उक्त वचन श्रवण कर किचिन भी चलायमान नहीं हवा धावत विचरने लगा|तब वह देव दो वक्त तीन वक्त उक्त वचन कडे यावन मोलह संग से अतिदुःखी होकरमर जावेगा ॥ ५ ॥ तब उस मुरादव को उस देवता का दो वक्त तीन वक्त उत वचन श्रवन कर इस प्रकार विचार हुवा अहो यह पर अनार्य है, इसने मेरे तीनों पुत्रों की घात की.अब यह मेरे शरीर में एक ही माथ सोले प्रकार के रोग
प्रक्षेपना चहाता है. इसलिये इम पुरुष को पकडना श्रृंय है. ऐमा विचार कर उठा, कि वह देव तत्काल * आकाश में भगगया. सूगदेव के हाथ में म्यंमा आगया, मरादेवने कोलहल शब्द किया ॥६॥ तद
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवमहायजी ज्वालापमादजी .
अर्थ
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