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सूत्र
अर्थ
48+ सप्तमांग- उपाशक दशा सूत्र
दोन चुलणिपियं समणो वासयं एवं क्यासी- हंभो चुल्लणीपिया ! अपस्थीया पत्थीमा जात्र नभंजसि तो ते अहं अज मज्झिमं पुत्तं साओगिहातो नीणेमी २ ता तव अग्गओ घाम जहा जेठं पुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ ॥ एवं तचं कणियासंपि जाब अहियासेति ॥ १० ॥ एणं से देवे - चुलुणीपिया ! अभीयं जाव पासाइ २ हा उत्थंपि खुलणीपियं एवं बयासी - हंभो चुल्लणिपिया ! अपत्थीया पत्थीया अणं
तुम्हं जात्र नभंजसि ततो अहं अज्ज जा इमा तत्र माया भद्दासत्यवाहीणी देवयं गुरु
[पकड कर लालूंगा, तेरे आगे मारूंगा, मांसके तीन तुकडेकर कडाइमें तलकर मेरे शरीरपर छांदूंगा; जिससे तू अकालमै मृत्यु पावेगा. ऐसा सुनकर भी चुल्लनीपिता चलायमान नहीं हुवा. तब वह देवता मध्यम पुत्र को भी पकडलाया मारकर तीन टुकडे कर उस का मांस रक्त कडाइ में तलकर चुल्लनीपिता के शरीर पर छांटा, जिस से चुल्लनीपिता को अति उज्जल बेदना उत्पन्न हुई, परंतु किन चेम्मान भी चलायमान नहीं
हुवा.
जिस प्रकार दूसरे पुत्र की घात की उस ही प्रकार तीसरे कनिष्ठ-छोटे पुत्र को भी मारकर तलकर शरीर पर छांटा तो भी चलायमान नहीं हुवा, यावत् धर्म ध्यान ध्याता हुवा विचरने लगा || १० | तब वह | देवता हनीपिता को निर्भय यावल धर्व ध्यान ध्याता हुबा देखकर चौंधी वक्त वह देवता चुल्लनीषिता से
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चलनीपिता श्रात्रक का तृतीय अध्ययन 4
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