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________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - धग्गुरा परिक्खित्ते सयातो गिहातो पडिनिक्खमति २ ता चंपानगरी मझमझेणं निगछति २ ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जहा संखो जाव पज्जुवासति ॥ २७ ॥ तत्तेणं स्मणे भगवं महावीरे, कामदेवस्स तीसेय जाव धम्मकहा सम्मत्ता ॥ २८ ॥ कामदेवा,त्ति समणं भगवं महावीरे कामदेव समणोवासयं एवं वयासी-सेणूणं कामदेवा! तुब्भे पुन्वरत्तवरत्तकाल सभयंसि एगेदेवें अंतिए पाउन्भूए, तएणं ते देथे एगं महं दिव्यं पिसायरूवं विउव्वई २ स्ता आसुरुत्त ४, एगं महं निलुप्पल अगिहाय तुमं एवं कर फिर पीछा यहां आकर पौषध पारना श्रेय है. यों विचार किया, ऐसा विचार कर शुद्ध पवित्र शभा में प्रवेश करने योग्य वस्त्र धारन किये, अल्प मनुष्यों के परिवार से परिवरा हवा स्वयं के घर से निकला,निकलकर चम्पामगरी के मध्यरमें होकर जिस प्रकार भगवती सूत्र में कहे शंख श्रावक आयाथा तैसे आकर यावत् सेवा भक्ति करने लगा ॥ २७ ॥ तब श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीने कामदेव श्रावक को और उस महा पस्षिध को धर्म कथा सुनाइ, धर्म कथा पूर्ण हुई॥२८॥ तब सर्व परिषदा सन्मुख कामदेव से श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी इस प्रकार कहने लगे-हे कामदेव ! अधीरात्रि व्यतीत हुवे बाद तेरे पास एक देवता प्रगट हुवा था, उस देवताने एक बडा पिशाच का रूप बनाया था। वह असुरक्त कोपाथ मान होकर एक महानिलोत्पल कमल समान खड्ग हाथ में धारनकर तेरे से यों बोला । अर्थ | • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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