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________________ सप्तमांग-उपासक दश मूत्र 48 क्यासी-हंभो कामदेवासमणीवासिया! धणेसिणं तुम देवाणुप्पिया! संपन्ने,कयत्थे कयल. क्खणे,सुलद्धेणं तब देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवीयफले,जस्सणं तव णिग्गंथे पावयणे इमेयासवे पडिविती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया|एवं खलु देवाणुप्पिया! सक्के देविंदे देवराया गाव सकसि सिहासणंसि चउरासीते सामाणिय साहस्सीणं जाव अनसिंच बहुणे देवाणय देवीणय मझगते एवमाइक्खति ३-एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबूद्दीववीवे भारहेवासे पाएनयराए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिते बंभचेरवासी वर्ण के वस्त्र पहने हुवा कामदेव श्रावक से यों कहने लगा-अहो कामदेव अपणोपासक ! धन्य है। तुमारे को, अहो देवानुप्रिय ! तुम संपूर्ण प्रतिज्ञा के पालक हो, अहो देवानुप्रिय ! तुम उत्तम लक्षण के धारक हो, कृतार्थ हो, अहो देवानुप्रिय ! तुमारेको मनुष्य जन्म जीवित का फल अच्छा प्राप्त हुवा, जिस कर तुमारेको निर्ग्रन्थ प्रवचनकी इस प्रकार दृढता माप्त हुइ, सन्मुख आई, इसलिये ही तुमारी शक्र देवेन्द्र देवता के राजा शक्र सिंहासनपर बैठेहुवे चउरासी हजार सामानीकदेव और भी बहुत से देवता देवीयों की परिपदा के मध्य में ऐसा कहा ऐस प्ररूपा प्रसिद्ध किया कि-यों निश्चय हे देवानुप्रियाओं। जंबूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र की चम्पा नगरी में कामदेव श्रावक पौषध शाला में पौषध ग्रहणकर ब्रह्मचर्य युक्त दर्भ के विछोनोंपर बैग । 48 कामदेव श्रावक का द्वितीय अध्ययन 4220 448 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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