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________________ सत्र aninancarnamaAhmannar - 4887 सप्तमांग-उपाशक दशा मूत्र 4882 पदेसुलोलेति॥१६॥तत्तेणं से कामदेवे तं उज्जलं जाव अहियासेति ॥१७॥ तएणं से देवे हत्थिरूवे जाव नों संचालक संते तंते जाव सणियं २ पच्चीसक्कइ रत्ता पोसह सालाओ.. पडिनिक्खमइ २त्ता दिव्वं हत्यिरूवं विप्पजहइ रत्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउन्बई, . ते उग्गविसं,चंडविसं धोरविसं दिदिविसं,महाकाय,मसिमुसःकालगं नयणविसंरोसंपुर्ण, अंजणपुंज निगरप्पगासं, रत्तच्छं लोहियलोयणं,जमलजुयल चंचलजीहं धरणीयलवेणी दांतोपर झेलकर, शरीर में छिद्र कर जमीन पर डालकर पांवों से गेलने ( मर्दने ) लगा ॥ १४ ॥ जिस से भी कामदेव को अत्यन्त उज्वल सहन करना दुष्कर ऐसी वेदना हुई उसे समभावकर सही ॥ १७ ।। तब बह हस्तिरूप देव यावत् कामदेव को किंचित मात्र भी चाय मान नहीं करसका, तब थका बहुत ही थका यावत् शनैः २ पीछा हटकर पौषध शाला के बाहिर निकला, दिव्य हाथी का रूप छोडकर, एक दिव्य सांप का रूप बनाया, वह सर्प उग्रीवप का धारक, रौद्र विषका धारक घौर भयंकर विषका धारक, दृष्टी विपका धारक, महामवर शरीर बाला, मस्ती-काजल. या सोनार की मूम के समान आखों की किक्की (पुनली) वाला, रक्तप्रांखों वाला, अंजन-काजल के दम जैसा प्रकाश वाला, क्रोध पूर्ण रक्त आखों वाला, यमल युगल दोनों चंचल चपल जिव्हा बाला, लम्बाइ में और कृष्णता में धरती की वेनी (शिखा-चोटी) ममान, उत्कट अन्य को पराभव करने केलिये स्फुट 48+ कामदेव श्रावक का द्वितीय अध्ययन प्रगट Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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