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+ समांग-उपशाक दशा सूत्र 488
पुढवाए लोलुयन्चुते नरयवा से चउरासति वाससहस्स ट्ठितियं जाणति पासति॥५४॥ तेर्ण कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिते, परिसा निग्गया, जाव पडिंगते॥७५॥तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्सा भगवओ महावीरस्स जो अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे, गोयम गुत्तणं, सत्तुस्सेहे, समचउरंस संट्ठाण संट्टीए, बजरिसहनारायसंघेयणे, कणगपुलगनिघसपम्हगोरे, उग्गतवे, दित्ततवे, तत्ततवे, घोरतवे,
महातवे, उराले, घोरगुणे, घोरतवसी, घोरबंभचेरवासी, उच्छुढसरीरे, संक्खित्त अज्ञान कर जाना अवधिदर्शन कर देखा ॥ ७४ ॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पमरे, परिषदा वंदने गई, धर्मकथा श्रवण कर पीछी गई ॥ ७५ ॥ उस काल उस समय में श्रमण
भगवंत श्री महावीर स्वामी के बड़े शिष्य इन्द्र भूनी नामक अनगार, गौतम गौत्र के धारक, सात.हाथ के * ऊंचे, समचतुरस्र संस्थान से संस्थित, बज वृषभ नाराच संघमनी, सुवर्ण के अन्दर के विभाग जैसे पन में
गौर वर्ण शरीर के धारक, उप तप के करनेवाले, दिन तप के करनेवाले, तन तप के करनेवाले, महा तपस्त्री, उदार तपस्वी, घोर बहुत क्षमादि गुन के धारक, कायर को कम्पनी उत्पन करे ऐसे तप के करनेवाले, शरीर की ममत्व रहित, विस्तीर्ण सेजोलेश्या को संक्षिप्त कर रखनेवाले, सदैव निरंतर छठ २
आणंद श्रीवक का.. मथम अध्ययन 488
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