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________________ मांग-उपाशक दशा मूत्र Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn. जाव परकमेतिवा णितियासव्वभावा. अहणं तुब्भे केई पुरिसे वातावयंवा जाव परिट्र वेतिवा, अग्गिमित्ताएवा जाव विहरति, तुमंवा तं पुरिसं आओसंसिका जाव ववरोविजसि, तो जं वदसि पत्थि उटाणेतित्रा जाव णित्तियासस्वभावा तं तेमिच्छा ॥ २३ ॥ एत्थणं सद्दालपुत्ते संबुद्धे, ॥२॥ तएणं सदालपुत्ते ! समणे भगवं महावीरं वंदति नमसति २त्ता एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! तुम्भेणं अंतियं धम्मणिसामित्तए ॥२५॥ तएणं समणे भगवं महावीरे सहालपुत्तस्स तीसेयमहई महाधम्म परिकहई ॥ २६ ॥ तत्तणं से सहालपुत्ते समणस्स भगवओ महावीररस अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्ठ को चोरनेवाले को यावत् एकान्तमें परिठनेवाले को और अग्निमित्रा भार्या साथ भोग मोगक्नेवाले उस पुरुषपर अक्रोश करना चाहिये यावत जीव रहित करना चाहिये क्योंकि तूं कहता है कि नहीं है उत्थान कर्म यावत् पर। सब नियत स्वभाव-होनहार होतबसेही होता है, तो तेरा उक्त कथन मिथ्या है ॥ २३ ॥ इतना महावीर स्वामी का वचन श्रवण कर सदाल पुत्र तहां प्रतिबोध पाया-समझा ॥ २४ ॥ तब सद्दाल पुत्र श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा वोला-अहो भगवंत ! मैं आपके पास धर्म श्रवण करना चहाता हूं ॥ २५ ॥ तव श्रमण भगवंत महावीर स्वामी इस सदाल पुत्र को और वहां रही हुई महा! परिषदा को धर्म कथा मुनाई ॥ २६ ॥ तब सदाल पुत्र श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के पास धर्म श्रमण । | 438- सद्दालपुत्र श्रावक का समम अध्ययन 488 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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