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सूत्र
अर्थ
4+ सप्तमांग उपाशक दवा सूत्र
पायच्छित सुद्धप्पावेसाई जब अप्पमहग्घाभराणालंकीय सरीरे, मणुस्वग्गुल परिगते, सातो गिहातो पडिनिग्गच्छति २ त्ता पोलासपुरं नगरं मज्झ भझेणं निगच्छति सत्ता जेणेव सहसंबत्रणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेक स्वागच्छइ २त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति वदति नम॑सति स्त्ता जाव पज्जुवासंति ॥ १० ॥ तत्तेयं समणे भगवं महावीरे सदालपुत्तस्स आजीविय उवासमस्स महाति महालया जाव धम्मंकहेइ, जावधम्मक हा समत्ता॥ ॐ ॥ सद्दलिपुत्ताई, भगव "महावीरे सद्दालपुत्तं आजीवियज्वासयस्स एवं वयासी-सेपूर्ण सद्दालपुत्ता ! कल विचार कर स्नान किया यावत् शुद्ध हुवा अच्छे स्थान में प्रवेश करने योग्य अल्पभार बहुत मूल्य वाले वस्त्रालंकार से शरीर को अलंकृत किया, बहुत मनुष्यों के परिवार से परिवरा हुवा अपने घर से निकला, निकलकर पोळास पुर नगर के मध्य (बजार) में होकर जहाँ सहस्रम् उद्यान जहां श्रमण भगवंत महावीर स्वामी थे तहां आया, आकर तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिरकर वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर सेवा भक्ति करने लगा ॥ १० ॥ तव श्रमण भगवन्त महावीर स्वामीने महाल पुत्रको और उस महापरिषदा को धर्मकथा सुनाई ॥ ११ ॥ सद्दाल पुत्र से श्रमण भगवंत महावीर स्वामी यों कहने लगे निश्य हैं लद्दाल पुत्र ! कल दो प्रहर दिन व्यतीत हूं वे ( या आधीरात्रि व्यतीत हुवे ) जहां आशोक
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* सहालंपुन श्रार्षक कान्ससमः अध्ययन 48:
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