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________________ सूत्र अर्थ 4181- सप्तर्मान- उपाशक दशा सूत्र 418+ अरहाजिणे केवली, सव्वष्णू सव्यदरिसी, तिलोक हिय महिय पूईए, सदेवमणूया सुररस लोयरस अचणिचे वंदणिज्जे पूयणिजे सकारणिजे सम्माणणिजे, कल्लाणं मंगलं, देवयं चेइयं जात्र पज्जुवासणिज्जे, तवोकम्मं संपया संपत्ते, तष्णं तुम्मं वंदेज्जाहि जाव पज्जत्रासेज्जाहि, परिहारिएणं पीढफलगसिज्जा संथारएण उवणिमंतेजाहिं. दोपि तप एवं चपासी जामेवदिसिं पाउन्भूए तामेवदिसिं पडिगए ॥ ७ ॥ तरणं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविय उन्चासगरस तेणं देवेणं एवं वृत्तसमाणस्स इमेयारूत्रे अज्झत्थिय जईन्स जिनेश्वर केवल ज्ञानी- निर्दोष, तीन लोक के जीवों के अर्चनीक पूज्यनीक सब देवता मनुष्य सुरलोक के अर्चनीक बंदनीय पूज्यनीय कल्यान के करता, मङ्गल के करता, देवाधीदेव यावत् सेवा मति { करने योग्य जिनको तपकर्म से प्राप्त हुइ सम्पदा उस युक्त अर्थात् विशुद्ध तप के प्रभाव से घन पातिक { कर्म का नाश हो अनन्त चतुष्य अतिशयादि ऋद्धि के धारक हुवे हैं, वे यहां आयेगे. उनको तू वंदना { नमस्कार करना, उनकी सेवा भक्ति करना, उन को पडिहारे ( पीछे ग्रहण किये जावे ऐसे) पाट पाटले मकान की आमंत्रणा करना. इस प्रकार वह देवता दोतीनवक्त कहकर जिसदिशा से आया उस दिशा (देवस्थान) में पीछा गया। तब सदासपुध जजीविका उपाशक उसदेव के पास उक्त कथन श्रबनकर मन में विचार करने लगा Jain Education International For Personal & Private Use Only 438+ सहालपुत्र श्रावक का सप्तम अध्ययन 48+ (www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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