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________________ सप्तदश चन्द्रप्रज्ञप्ति मत्र-पष्ट उपाङ्ग 48+ मूरिए एगणं मुहत्तणं गच्छति आहितेति वदेजा ॥ ४ ॥१॥ तत्थ खल जे ते एव माहम छछ जायण सहस्साति सूरिए एगमेगेणं महत्तेणं गच्छति तेणं एवमाहंमु-ता जयाणं मूरिए सव्वभंतर मडलं उवम्कमित्ता चार चरति तयाणं उत्तम कट्टपत्ते दिवसे भवति जहाणिया दुवालस महत्ता राई भवति, तेसिंचणं दिवसंसि एग जोयण सयमहरसं अट्ठ जोयण सहस्हाति हाव खेने पणने । ता जयाणं सरिए सव्वबाहिरं मडल उचसंकमित्ता चरं चरति, तयाणे उत्तम कट्रपत्ता १७२ हजार योजन का कहा है. चारह को छ गुने करने से ७२ होते हैं २ जो ऐमा कहते हैं कि सर्य एक मुहूर्तमें पांच हजार योजन चलता है उनका कथन इसहेतुमे है कि जब सूर्य सबसे आभ्यंतर मंडलपर रहकर चाल चलता है तब उत्कृष्ट अठारह महूर्नका दिन जघन्य बारह मुहूर्नकी रात्रि होती है. इस सायमें ताप क्षेत्र १० हजार योजनकाहै. अठारह को पांचम गुणनेमे९. हमार योजन होते हैं. जर सूर्य व हिरक मंडलपर चलना है तव अठारह मुहूर्त की रात्रि व बारह मुहूर्गका दिन होता है इसमय नाप क्षेत्रक० हजार यातन का है बारह को पांच स गुणने से ६० होते हैं. जो एमा कहते है कि एक २ मुहूर्त में मूर्य चार २ हजार योजन चलता है उन का कथन इस हेतु स है कि जब सूर्य सब से आभ्यम्तर मंडल पर चलता है तब अठारह मुहूर्त का दिन व बारह मुहूड़ की रात्रि तोती है, उस समय ताप क्षेत्र बहत्तर हजार योजन का है क्योंकि । 48. दूसरा पहुड का तीसरा अंतर पाहुडा Rod 48 | For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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