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________________ सूत्र सप्तदश चन्द्रप्रज्ञाप्ति सूत्र-षष्ठ उपाङ्ग ++ भवति ॥ से निक्खममाणे गरिए णवं संवकर अयमाणे पढमंसि अहोरलि अभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, जयाणं मूरिए अभंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरति,तयाणं सा मंडलवया, अडयालीसंच एगट्ठी भागे जोयणस्स.. वाहल्लेणं, णवणउति जोयण सहस्साई छच्च पणयाले जोयणसते पण्णतीसंच एगट्ठी भागे जोयणरस आयामविश्वभेणं, तिन्नि जोयण सय सहस्साति १णरस सहस्त्ताति जब सूर्य दूसरे मंडल पर जाकर चाल चलता है तब वह दूसरा मंडल एक योनन के एकसठये अतालीस भाग का जाडा है. और नन्यानवे हजार छ सो पेंतालीम योजन व एक योजन के एकसठिये ३५ भाग [९१६४५ ] इतना लम्बा चौडा है. आभ्यन्तर मंडल से दूमरा मंडल तक दो योजन व एक योजन के एकसठिये अडताल.स भाग का अंतर है, इतना ही अंतर दूसरी तरफ है. इस से इन के दुगुने पांच योजन व एस ठेये ३५ भाग हुवा. यह पहिले मंडल की लम्बाइ चौडाइ में मीलाने से *१९१६४५ में योजन हार, और ३१५१०६ योजन से कुछ अधिक की परिधि कही. क्यों कि इसमें 4 ५ है योजत की लम्बाई चौडाइ की परिधि मीलाना. ५. की पूर्णाक में लाने से ३४० हो, उस का वर्ग करने से २१५६०० होवे उसे १० गुने करने से ११५६०००. इस का फीर वर्ग मूल 48 पहला पार्ट का आठमा अंतर पाड्डा 42 મર્થ .+28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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