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________________ सूत्र अर्थ +8+ सप्तदश चन्द्रप्रशति सूत्र- षष्ठ उपाङ्ग 48 जायणसयं आयामत्रिक्खंभेणं तिष्णि जोयणसहस्साइं तिन्निय नवणउत्ति जोयण सते परिक्खेत्रेणं आहितेति वदेना एगे एवमाहंसु ॥ १ ॥ एगपुणे एवमाहंसु ता सव्वाविणं मंडलंवया जोयणवाहलेणं एवं जोयण सहस्सं एगंच चउन्तीसं जोयणमयं आयामविक्रमेणं तिन्नि जोयण सहस्साई चत्तारिवि उत्तर जोयणसते परिक्खेवेणं आहितेति वदेजाएगे एवाहं ॥ २ ॥ एगे पुण एवं माहंसु ता सव्वाविणं मंडलवया जोयण बाहल्लेणं, एवं जोयणं सहस्सं एगच पण्णतीसं जोयणसयं आयामविक्खंभेणं, तिण्णिय जोयण सहस्साइं चत्तारिय पंचुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं आहितति वदेज्जा, एगे एव माहंसु ॥ ३॥ वर्ष पुण एवं वयामो ता सव्वाविणं मंडलं इम का क्या { के जाडे व एक हजार एकसो पेंतीन योजन के लम्बे चौड़े हैं, और तीन हजार चारसो पांच योजन का परिधि वाले हैं. मै इस कथन को इ प्रकार कहता हूं कि वे सब मंडल एक योजन के एक सठिये अडनालीस भाग के जाडे हैं. मंडल की लम्बाई चौडाइ का कुच्छ नियम नहीं है ॥ १ ॥ कारन है ? उत्तर – यह जम्बूद्वीप एक लाख योजन का लम्बा चौडा यावत् परिधि वाला { हैं. इस में जब सूर्य सब से आभ्यंतर मंडलपर रहकर चाल चलता है तब वह मंडल एक योजन के एकसठिये अडतालील भाग का बाडा है और नन्यानवे हजार छ सो चालीस ( ९९६-४० ) Jain Education International For Personal & Private Use Only 4 पहिला पाहुडे का सातवा अंतर पाहुडा www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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