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१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
चार चरति अहिते ते वदेजा ॥ १ ॥ तत्थणं कओ हेतुति वदेजा? अयणं जंबूद्दीवे. दीवे जाव परिवखवेगं ता जयागं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उसंकमित्ता चारं चरति तयाणं उत्तम कट्टपत्ते अटारल भहुत्ते दिवसे भवति, जहाणिया दुवालस मुहुत्ता राई भवति, सेनिक्खममाण सरिए गवं संवच्चारं अपमाणे पढमसि अहोरत्तसि अष्भतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, तयाणं दा., जायणाई अडयालीसच एगट्ठीभाग जायणस्स एगमगणं रातिदिएगं दिकपावतिता चारं चरति, तयाणं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति दोहि एगट्ठीभाग मुहुत्तेहिं ऊगे, दुवालस मुहुत्ता राई
भवति दोहिं एगट्ठीभाग मुहुत्तहिं अहिया. सनिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि प्रश्न-इस में क्या हेतु रहा है ? उत्तर-यह जम्बूद्वीप एक लाख योजन का लम्बा चौडा यावत् परिधि वाला १६. इस में जब सूर्य सब के आभ्यंतर मंडलपर रहकर चाल चलता है तब उत्कृष्ट अठारह मुहर्न का
व अघम्य बारह महूर्त की रात्रि होती है. वहां से नीकलता हुवा सूर्य नया संवत्सर में प्रवेश करते प्रथम जरात्रिमें आभ्यंतर मंडलसे दमश मंडल पर रहकर चाल चलता है तब दो योजन व एकयोजन के एकसठिय ४८
भाग (२:7 क्षेत्र एक रात्रिदिन में उल्लंघकर चाल चलता है. उससमय उत्कृष्ट एकसाठये दाभाग कम अठारह व मुर्नका दिन व दो भाग अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. यहां से नीकलता हुवा सूर्य दूमरी अहो।
प्रकाशक-राजाबहादुर.लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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