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________________ + 4+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी एगं जोयणसय सहस्सं छच्च अडयाल जायणसेऐ बावणं च एगट्ठी भाग जोयणस्स. अण्णमण्णस्स अतर कटू चारं चरति, तयाणं अट्ठारस्स मुहुत्ता राती भवति चउहिएगट्टि भाग ज ! ऊण, दुवालस्स मडुत्ते दिवसे भवति चउहिंएगठी भाग अहिए ॥ एवं खलु एत. उणं गाविसमा एते दुवे सरिया तदाणंतराओ तदाणतरं मंडलं उसकममाणे २ पच जोयणाई पपणतीसंच एगट्ठी भाग जोयणस्स एगमेग मंडल अण्णमण्णस्स अंतरं निबद्रिमाणे २ सबभंतरं मंडलं उबसंकमित्ता चारं चरंत, ता जयाणं एते दुवे सुरिया सव्वभंतरं मंडलं उयसंकमित्ता चारंचरति तयाणं णवणउति जोयण सहस्साई छच्चचताले जोयणसए अण्णमण्णरस अंतरंकटु, .प्रकाशक-राजावहादरलाना मुखदव सहायनी ज्वालाप्रसादजी. उक्त दो भाग आधबारह महतका दिनै हाती फीर वे नीकलने हो दोनों मूर्य दसरी अहोरात्रि में तीसरे मांडल पर रहकर चाल चलते. जर तीपरे मांडले पर रहकर चाल चलते हैं तब दोनों को परस्पर एक लाग्य छ मो अडनालीप यांजन और एरपटिये वावन भाग का अंतर रहता है और उत्कृष्ट एकसठिये चार भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि व जयन्य उक्त चार भाग अधिक बारह महूर्त का दिन होता हे इंगतरह अंदर प्रवेश करने हो दोनों नूई प्रयक मंडल में पांच २यजन व एकमाठिये पंतीस भय आसतर. कम करते हुवे सब से आभ्यन्तर मंडल पर उपसंक्रम कर चलते हैं. जब दोनों सर्य सब से 16 मकान्तर मंडल ५३ घाल चलते हैं तब ९९६४० योजन का परस्पर अंतर रहता है और अठारह. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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