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"अर्थ
-48 ससदक्ष चंद्र प्रजाति सूत्र पठ-उपाङ्ग
विणये पारहाणा ॥ अरिहंत थे गणहर मई किरहोति वालणो ॥ ४ ॥ तन्हो धिति उद्यागुच्छाह कम्बलविरिय लिक्विपना॥ धायक णियमा, णय अविगीर सुदायका ॥ ५ ॥ वीर वरस्ल भगवओ। जर मर किलेत दोस राहियस्स ॥ बंदामि विणये
पण्यो , सोलख पाइ संपाए ॥६॥ इति चंद पण्णत्तीए वीसमं पाहुढं सम्मत्तं॥२०॥ कोशति का ज्ञान दान देना. और भी जात्यादिपद युक्त, प्रत्यतीक. सिद्धांत के खंडन करनेवाले
को और जा पहश्रुत नहीं हो उसको का शारदान नहीं देना परंतु जिन प्रवन में सम्यक प्रकार से भधादिपता से शार्थ पर्याय की आलोच न करनेवाले सन्यक्वी को इस का ज्ञान दान देना. अब *शख के दान में निर्णयपना करते. ॥२॥ ज काई श्रद्धा, धृति, (धैर्य) उत्थान, उत्साह, कर्म,
बल, वीर्य, पक्षात्कार व पराक्रम मे चंद्र मज्ञाति का ज्ञान प्रात करके अयोग्य अभय को देंगे तो देनेवाले को भी इस की हानि होगी॥३॥ इस तरह अभय को ज्ञान देनेवाला साधु प्रवचः कुल गण व संघ से 5
बाहिर जानना. अरिहंत व गणवरों की मर्यादा उल्लंघनेवाला जानना ॥४॥ इस से धृति, उत्थान, A उत्साह, कर्म, बल, वीर्य से ज्ञान ग्रहण कर धारन करना. और अविनीत को देना नहीं॥६॥ जो जन्म ० जिरामरण के क्लष व अठारह दोष रहित होगये है, जिनो निराबाध मुख प्राप्त कियाहै और जो अन्य का प्रत
करानेवाले हैं. वैसे श्री चौबीसवे वर भगवान को विनय पूर्वक नमस्कार करता हूं. यह चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र का बीसवा पाहुडा संपूर्ण दुसः ॥२०॥ यह चंद्र प्रज्ञप्ति सत्र समाप्त हुवा. .
मना पाहडा
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