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- अनुदकालव्रह्मा मुनि श्री अपोषिजी
तेणं एव मासु तत्थ खलु इमे पणरस कसिणापुग्गला पण्णत्ता तंजहा-सिंघिडए, जडिलए, खतए, खरए, अजणे, खंजणे, सीतले, हेमसीतले, कैलासे, अरुणप्पहे पभंजणे नभपू ए, कविर ए, पिंगलए, राहु॥ता जयाणं एए पण्णरस कसिणा पोग्गला सत्ता चंदस्त्या सुरवा लेताणुबंध चारिणो भवति, तताणं मणुसलोगे मणुस्सा वयंति एवंखलु राह च वा सूरवा गिव्हति। ता जयागं एए पण्णरस कसिणा पोग्गला नो चंदस्सबा सूरस्स लेसाणुबंध चारिणो भवति, तयाणं मणुस्सलोगे मणुसावयंति एए खलु
राहु चंदं भूरबा गिण्हइ एगे एवं मासु ॥ ५ ॥ वयंपुण एवं वयामो प्रकार के कृष्ण पुदल करे जिनके नाम-१ सियाटक २ जटिल ३ क्षुल्लक ४ खर ५ अंजन ६ खंजन ७ शोडल ८ मिसीतल ९ कैलान १० उरुगमय ११ प्रभंजन १२ नभएर १३ कपिल १४ पिंगल और ११५ राहु. जब उक्त पनाह प्रकार के कृष्ण पुदल संपूर्ण चंद्र अथ। सूर्य को लेश्या को आवरणरूप
तब मनुष्य को एकिन है किरहु चंद्र दर्य का ग्रहण कर है. और जब उक्त पन्नाह से प्रकार के कृष्ण पहली चंद्र मूईको आवरणरूप नहीं होने तब मनुष्य लोक में एना कहते हैं कि गहु चंद्र सूर्य को ग्रहण नहीं करता है ॥ ५ ॥ भगवान कहते हैं कि इस कथन को मैं इस प्रकार कहता हूं कि
प्रकाशक-रामवहादुर लाला सुखदेवमहायमी ज्वालामसदानी .
अर्थ
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