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वरगंधध। अवोच्छिन्ने नयट्ठयाए अण्णे चयति अण्णे उववज्जति आहितेति वदेज्जा इति . सत्तरसम पाहुड सम्मत्त ॥ १७ ॥ * * * * *
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वंत, महा वरवंत महानुभावाले, महासुखपाले, श्रेष्ट वस्त्र धारन करनेवाले, श्रेष्ट माला धारन करनेवाले, श्रेष्ट गंध धारन करने वाले,अविच्छिन्नपने अ युष्म पूर्ण होने पर चलते हैं. और अन्य उत्पन्न होते हैं. यों चंद्र प्रज्ञाप्त मत्र में सतरहवा पाहुडा संपूर्ण हुबा ॥१७॥
सदश-चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ-उपनि
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सत्तरहवा पाहुडा 48
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