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________________ सूत्र अर्थ सप्तदश चंद्र प्रज्ञः सूत्र पष्ठ उपा 全等 || पोडश प्राभृतम् ॥ ता कहते दक्षिणा लक्खा अहिनेति वदेजा ? ता देमिणा तिया चंदलेस्सा ता दोसिया तिया चलेगा कि अडे किं लक्ख ?ना एग भट्टे एगलक्खणं आहितति बजा ॥ १ ॥ ता कहते सुरेल आहितेति वदेजाता सुरलेसातिया आयावेति २ ताकि अटुं किं लक्खप ? ता एगडे एक लक्खणा॥ २ ॥ ता कहंत छाया लक्खणे आहितति देना? ता अंधकारेनियाछायातियता अंधकारतिय छयातिया कि अट्ठे किं लक्ख ? ता एगई एग लक्खण ॥ इति सोलसमं पहुई सम्मन्तं ।। १६ ।। अव मालवा पहुडा कहते हैं अहा! उद्योत का भक्षण कैसे कहा ? अहो गौतम ! उद्योत चंद्र देश से है, घोपे या किसलिये कही अथवा उन का क्या लक्षण है !!उसका अर्थ कहा और एक लक्षण कहा ॥१॥ अधे भगवन् ! सूर्य का वय अक्षक!सूर्य या वहां आप होता है. अम सूर्य लेश्या वहां अव किस प्रकार कहा ? एक अर्थका एक अर्थ रूप म कहा || २ || अहा भगवन्! छाया किसे कहते हैं अर्थात छाया का क्या लक्षण है ? अहो फैन ! जहां अंधकार है वहां छा है यह भगवन् ! जहां अंधकार है वहां छाया है उन का का लक्षण कहा ? अहा गौतम ! एक अर्थ अंधकार का और एक लक्षण अंधकार करने का है. यह चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र का सोलहवा पाहुडा संपूर्ण हुवा || १६ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only *सोलहवा हुडा ३८५ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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