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________________ 48 सूत्र + दवालस महत्ता राती भवति॥से निखममाण सरिए णवं संबछरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए मागाए तसाए पदसाए अब्भतराणंतरं उत्तरहू मंडलं संठिई उवसंकमित्ता चारं चरति, जयाणं सूरिए अभंतराणतरं उत्तरद्धमंडलं संठिई उवसंकमित्ता चारं चरति तयाणं अट्ठारस मुहत्ते दिवसे भवति, दाहि एगट्ठीभाग मुहत्तेहिं ऊणे, दुवालस मुह ता राई भवति, दोहिं एगट्टी भाग महत्तेहिं अहिया॥ से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तीस, उत्तराए अंतराए भागाए तसाए सनदश चन्द्र प्रज्ञप्ति मूत्र-पष्ट उपाङ्ग भाग इतना उलंघ कर नया संवस्तर में आता है तब प्रथम अहोरात्र सर्शता हुधा, दक्षिण दिशा के अंतर भाग में से उस दक्षिण दिशा के प्रथम मांडलेक प्रदेश से, पहिला आभ्यंतर मांडले के अंतसे उत्तरार्ध मंडल पर रह कर चाल चलता है. जब दो योजन व एक ये जन के एकसाठय ४८ भाग मितने बाहिर नीकलता हुवा सूर्य आभ्यंतर मंडल के अंत से उत्तरार्ध मंडल को अंगीकार कर चाल चलता है तब अठारह मुहूर्त में एक सठिये दो भाग कम का दिन हाता है और बारह मुहूर्त में एकसठिये दो भाग 4 अधिक की रात्रि होती है. फीर दूसरे मांडले से सूर्य नीकलता हवा दूसरी अहोरात्रि में उत्तरार्ष माग से उस प्रदेश से नीकलकर दो योजन व एक योजन के एकसाठये ४८ भाग उल्लंघ कर प्र.मंजर पहिला पाहुडे का दूनग अंतर पहुडा 42 કઈ 428 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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