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षष्ठ उपाङ्ग
सप्तदश चंद्र प्राप्ति
जतिचंदे अप्पणीय परस्म चिणं पडिचरति तेरस सतसट्टी भागाति परस्स चिण्णं पडिचरइ ।। तेरस सतसट्टि भागाति जतिं चंदे अप्पोय परस्सचिण्णं पडिचरइ, एतावताबाहिरणंतरे पच्चथिमिल्ले अद्धमंडल एकतालीस सत्तट्ठी समते भवति, ॥ १२ ॥ ता
तच्चायणगते चंदे पुरथिमाते भागाते पविसमाणे वाहिरतस्स पुरथिमिल्लस्स अद्ध अपने मंडरपर चलता है. परंतु यहां अपना व अन्य का दोनों का कहा इम का कारण यह है कि एक मंडल १३४ भाग का है. इस में ६७ भाग में दो सूर्य व ६७ भाग में दो चंद्र इस तरह संपूर्ण मंडल के E क्षेत्र का विभाग करना. इस से एक २ विभाग ३३॥ का भाता है. परंतु ४१ भाग ६७ या चलकर ईशान कून में पाये इ-में से २४ भाग वायव्यकूनमें सूर्यका क्षेत्र स्पर्श यह पर क्षेत्र और १५॥ क्षेत्र ईशान " कून में चंद्र का साथै यह अपना क्षेत्र जानना. क्यों कि बेकी मंडल स्वनः का है. इस से १३ भाग परक्षेत्र और १५॥ भाग अपना क्षेत्र है. परंतु पाठ तेरह कहा है यह क्यों कहा होगा. सो, कारी गम र जा: ३ भाग अपना व पर का क्षेत्र कहा है उस में ॥ भाग अपना क्षेत्र और ९॥ भ अशकून मूर्यका परक्षेत्र हवे एमा संभव है तत्व केवी गम्य ॥१२॥ उम नक्षत्रकी तीसरी अयण है
हवा के अर्थ न ईशन कून में से नीकलकर नैऋत्य कुन में प्रवेश करता हुवा वाहिर के अंतर माश करता हुवा अर्थ मंडल के ४१ भाग ६७ ये जाते अपन। व अन्य का क्षेत्र पर चलता है. १३३ .
रहवा पाहुडा +8+
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