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अनवादक-चालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक पिजी +
घावटी अमावासातो पण्णत्ताओ, बावट्ठी एए कसिणारागा बावट्ठी एए कमिणा विरागा, एए चउम्बीसेपयंसते कसिण रागविराग जाव तिताणं पंचण्हं संबच्छराणं समया एएणं च उव्वीसेणं सएणं ऊगगात कत्तियाणं परित्ता असंखेज्जा सया भवइ देस रागविराग तिमक्खायं. ता अमावासातो पुणमासिणि चत्तालीम बयालीस मुहुत्तसए छयालिस च बावट्ठी भाग मुहु त्तस्स्स आहितेति वदेज्जा ॥ ता अमावासातोण अमावासा अट्ठ पंचासिते मुहुत्तसए तीसचं बावट्ठी भागं मुहुत्तस्म आहितति वदेजा ॥ ता पुण.
•प्रकशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी.
पूर्णमा का होचे ॥२॥ इस तरह ए युग में ६२ अमावास्या ६२ पूर्णिमा कही हैं. ६२ अमावास्थाओं में एक के अंतर से राहु के विमान से चंद्र विरक्त होवे. और बासठ पूर्णिया में एक के अंतर से राहु के विमान से चंद्र विरक्त होणे. यो १२४ वर्ष एक युग में होवे. इन १२४ पर्व में किसी स्थान रक्त व किसी स्थान विरक्त होने पवन इन पांच संत्सर के जितने ममप हैं उन में एक पक्ष के एक २ममय के हिमाब१२४ रमय होवे,आंख मचकर खोलने में जो ममय लगता है वह लीया है. और जिस समय का दो। विभाग होरेएम अमंख्यान समय हो. इन में से अर्ध चंद्र का विमान राहु विपान की साथ रक्त होवे और अर्थ राह विमान से रिक्त होये. एना अांत ज्ञानीन कहा है. सा अंगीकार करना. इस में संशय करना
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