SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - रीमुनि श्री अमो के अविना भर्थ 4. मनुवादक-पालब्रह्मचारीमान श्री अपो के ऋषिजी भागं च सत्तसीट्रियोछचा छ चुग्गिया · भागा सेसा ॥ तं समयं चणं सूरे केणं णक्खत्तेणं ता उत्तराहिं असाढाहिं उत्तराणं असाढाणं चरिम समए ॥ २४ ॥ तत्थ खलु इमे सविहे जोए पण्णत्ते तंजहावसहाणुजोए, वेणुयाजोए मंचजोए भवतिमंच जोए छत्तजोए. छत्ताति छत्तजार ज़गुचजे.ए धणजाए विणोतजोए मंडुकप्पुजाए : नामदसमे ॥ २५ ॥ ता एएसिणं पंचण्ह संवच्छराणं छत्तातिछत्त जागे चदे कसि देसस इस तरह यह यंत्र संपूर्ण हुवा. इसमें पांव भाउटी मूर्य दक्षिणार्ध के पुष्य नक्षत्र साथ योग करे और पांच आउटी उत्तरार्ध के अभिजित नक्षत्र साथ योग करे ॥ २४ ॥ वहां दश प्रकार के योग कहे है वृषभानु योग वृषभ के आकार में चंद्र सूर्य नक्षत्र जिस योग में प्रत सो वृषभानु योग है, २ बेराणु योग बोवास की वाणा के आकार से ३ मांधानु योग सो मांधा के भाकार से४ मंचन मंच योग से मांचा पर मोचा का आकार वाला ५ छवान योग सो छत्राकार वाला ६ छत्रत्रावये ग सो उत्र है उस पर उनका आकार ७ यूका सो वभ के स्कंध में जूका हाये उस अकार से ८धन समृद्ध चंद्र मर्य नक्षत्र के बीच मे जावे सा ९प्रणीत योग सा गृह नक्षत्र के करण जान, सूर्य उपाय सो १० बंडक पून योग गति के संभव से होवे ॥ २५ ॥ इन दश में से छानुछ। पोग वर्जकर क्षेष ना थोग प्राय: अनेकधा अनेक स्थान मीलते हैं इन से छत्रानुका का यहां प्रश्न सकते हैं. अहो भगवन । इन पांच संवत्सर में छत्र पर छत्र योग चंद्र किस देश में करे ? अहो, कामक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy