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________________ निव्वट्टित्ता राइखेत्तस्स' अभिवट्टित्ता चारं चरति, तयाणं उत्तमकट्रपत्ता उक्कोसिया अट्ठारस्स मुहुत्ता राइ भवति जहण्णते दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति,. एसणं पढमे छम्मासे एसणं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवासणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि वाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, तयाणं अट्ठारस मुहत्ते राई भवति दोहिं एमट्ठिभाग मुहुत्तेहिं ऊणे दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति, दोहिं एगट्ठीभाग मुहुत्तहिं अहिए से पहिले छ मास के पर्यवसान में जो मूर्य होता है वह दूसरे छ माम की अयन में पहिली रात्रि में सब से वाहिर के अनंतर दूसरे मांडले पर आता है, तब अठारह महूर्त में एकसठिये दो भाग कम की गात्र होती है और बारह मुहूर्त पर एकसठिय दो भाग अधिक का दिन होता है. अब दूमरी अहोरात्रि में तीसर. मांडले पर सूर्य प्रवेश कर चाल चलता है. जब दूसरी अहोरात्रि में तीसरे मांडले पर आकर मूर्य चाल चलता है तब अट्टाह मुहूर्त में एकसठिये चार भाग कम की रात्रि होती है और बारह मुहू पर एकसाठिये वार भाग अधिक का दिन होता है. इसी तरह प्रवेश करता हुवा सूर्य 15 अनंतर मांडले से दुसरे मांडले पर जाता हुवा एकसाठये दो २ भाग रात्रि क्षेत्र में कमी करता है और मुनि श्री अमालक ऋषिजन ०प्रकाशक-राजाबहादूर लाला मुम्बदवसहायजी चालाप्रसादजी. अर्थ 21-22 Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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