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अनवादक-चाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिजी 8+
3. पण्णत्ते तंजह - चउत्थेपव्वे, अट्ठमेपव्वे, दुवालसमेपव्वे, सोलसमेपवे, विसतिमपव्ये,
प्रवते ? फाल्गुन शुदी १५ सोलश पर्व है. इसे ९१५ से गुना करके १८९१ पिलाना. १६४९१५-३ ११४६४०+१८९१-१६५३१ होवे. इस को तीसरी धवगशि ३९८२ से भाग देवा, इस से चार ऋतु व्यतीत हुई. शेष १४०३ रहे, इम को ६२ का भाग दन से २२ दिन आये और शेष ३१ भाग ६२ ये
रहे. ये दिन पांचवी ऋतु का जनना. प्रथम पर्व में कौनसी ऋतु प्रवर्ते ? एक को ९१५ से गुनने से १९१५ होवे उस में १८११ मीलाने में ८:६ होवे इम के ३७८२ का भाग देने से भाग नहीं आता है, इस से कोई ऋतु पूर्ण नहीं हुई है. अब शेष २८०६ को ६२ का भाग देने से ४५ दिन आये और शेष १६ रहे. इतने प्रथम ऋतु के दिन जानना. अब जित तीथी में ऋतु पूर्ण होवे यह जानने की विधि कहते हैं. ऋतु के अंक को दो गुने करक एक बद करना. शेप रहे उसे दुगुनी करना
और जो आंक आव उने पर्व जालना. उस पर्व को दोमे भागते जो आये उतनी हीथी. उस तेथी। -को पहिले के पर्व में आग गिरना, जो पर्व हुवे उनने पई यग से संपूर्ण हुने जानना. और जो तीथी रही उस तीथी के चरम समय में ऋतु का चरम समय होवे. द्रष्टांत-प्रथम ऋतु कौनसे पर्व में कौन सी ऋतु में पूर्ण होवे ? यहाँ एक ऋतु को दो से गुना करने से दो हावे, इस में से एक बाद करते शेष एक रहा, इस एक को पुन: दो से गुनने से दो रहे, य दो पर्व सिक्रम
.:प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी माला प्रमादजी।
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