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________________ पुण्णमासिणं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोगं जोतेति? ता उत्तराहि अंसाढाहिं उत्तराणं असाढाणं चरम समय तं समयं चणं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोगं जोतेति? ता पुरसेणं पुस्सस्सणं एकोण विसंमुहुत्त! तेत्तालसिं च वावट्ठी भागा महत्तरस वावट्ठी भागं च सत्तसट्ठीया छेत्ता, तेत्तीसं चुणिया भागा सेसा, ॥३५॥ ता एतेसिणं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं धृवगाशे ३६७८३०० का अर्ध करने से १८३११५. होवे, इस के ६२ ये म.ग करने को७से भाग देना इससे २७४५० आचे, और शेष कच्छ नहा रह. मुहूत करने को २७४५० क १२ मे भाग देने से ४४२ मुहूर्त और शेप ४६ भाग रहे. पुष्य नक्षत्र पर्यंत ४२९ मुहूर्न २४ भाग ६२ ये ६६ भाग ६७ ये होते है इन में से ४४२, मुहूर्न बाद करना शंप १३ मुहू २१ भाग ६२ या व एक भाग ६७ या रहा. अश्लप। नक्षत्र मय बालकर १५ मुहुर्त का है, उस में स पूक्त मुहूर्न बाद करने से शेष एक महत ४०१, भाग ६२ ये ६६ भाग ६ ये रहे, उस समय प्रथम अमावस्या संपूर्ण द्वार. अहो भगवन्! उस समय सूर्य कौनसा नक्षत्र की माथ योग को मंपूर्ण करे ? उस समय सूर्य अश्लेषा नक्षत्र की साथ योग करक | संपूर्ण करे. यह नक्षत्र एक महः ४० भाग ६२ ये और ६६ भाग ६१ य शेष चंद्र नक्षत्र रहने पर सूर्य 1+नक्षत्र२२ महूदि भाग ६२ये शेप रहने पर प्रथम अमावास्या पूर्ण हो. इस की विधि बताते है. प्रथम अनावद क-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक - ५॥ •पकाशक गजानहादूर लाला मचवमहायजी वालाएमादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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