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________________ सत्र अर्थ 42 अनुवादक : बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी बत्तीसं २ भागे उवावणिवेता, तंसि २ देसंसि तंतं अमावासं वंदे जोगं जोतेति, ता ऐसिणं पंचं संच्छरणं चरम वात्रट्ठि अमावासं पुच्छा ता जंसिणं देसंसि चंदे चरम वाट्ट पुण्मासिणं जो ताते पुण्मः सिनिठाणात मंडलं एतच उविसे गं सतेनं छेत्ता सोलसम भागे, उसक्कावइत्ता, एत्थणं से चरम वात्रट्ठि अमावासं जोति ॥ ९ ॥ ता एएसिणं पंचहं संच्छराणं पढमं अमात्रासंसूरे कांदेसंसि ज. मेजोतेति ताजंसिणं सूरे चरमवावद्विअमावासं जोगंजोते ति ॥ ता - एते सिणं अमावास जो गंजोतेति ता ते अमात्रासं के १२४ भाग छेड़ कर अनुक्रम से बतीम भाग लेना, उम २ देश के स्थानक से उस २ मास की अमावास्या को चंद्र योग करके संपूर्ण करे. इन पांच संवत्सर में बासठवी अमावास्या की पुच्छा, जिम देश में चंद्रमा चरम बासटवी पूमा योग करके संपूर्ण करे उस पूर्णिमा को स्थान में एक मंडल के १२४ भाग करे वैसे सोलह भाग पीछे लेना. यहां युग की चरम वामी अमावास्या योग करके संपूर्ण करे ॥ १ ॥ इन पांच संवत्सर में प्रथम अमावास्या को सूर्य कौनसे विभाग में संपूर्ण करे ? जिस विभाग में सूर्य चरम बासी अमावास्या येोग करे उस स्थान से एक मंडल के १२४ भाग करके ९४ भाग अनुक्रम से ग्रहण करना. यहां सूर्य प्रथम अमावास्या को योग करके संपूर्ण करे, ऐने ही जैसे सूर्य की पूर्णिमाओं Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रकाशक- राजाराल सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसाद • २६४ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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