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________________ IN शश-चंद्र प्राइसि सूत्र पह-उमा णिवेत्ततिहिं भागेहि दोहिय कलाहिं पचत्थिमिल्लंसि चउभागमंडलमसंपत्ते एत्थणंसे चंदे, चरमवावटी पुण्णमासिणंजोगंजोतेति॥७॥ता एतसिणं पंचण्हं संवच्छराणं,पढमापण्णमा. सिणं सूरे कसि देससि जोगं जोतेति? ता जंसिगं देससि सूरे चरमवावट्ठी पुण्णमामीणं जागंजोतेति॥तेति पुण्णमासिणीओठाणाओमंडलं चउविसेणं संतण छेत्ता चउणउतिभा। उवावणिवेत्ता, एत्थगं से सूरे पढम पुण्णमामिण जोगं जोतेति ॥ ता एतनिण पंचण्हं संबच्छराणं देचं पण्णमासिण पच्छा? ता जसिणंदमसिमरिए पढम पण्णमामिणं जोगं जोतेति,ताते पुण्णमासिणीओ टाणा मंडलं एगचउविसे गंसतणं च्छेत्ता चउणवतिभागे एक भाग व एक भाग के तीन भाग की एक कला शेष रहे इन की बीच के स्थान में चंद्रमा वामठवी पूर्णिमा य ग करके संपूर्ण करे. एक युग में चंद्रग अर्ध मंडल १७६८ करता है, और दो चंद्रमा मिलकर संपूर्ण चंद्र मंडल ८८४ करते हैं॥७॥ प्रश्न-अहो भगवन् ! इन पांच संवत्सर में प्रथम पूर्णिमा को -सूर्य कौन से विभाग में योग करके संपूर्ण करे ? उत्तर- अहो शिष्य ! जिस विभाग में सूर्य युग की चरम बासठवी पूर्णिमा योग करके संपूर्ण करे उस स्थान में एक मंडल के १२५ भाग में के १४ भाग अनुक्रम से लेकर सूर्य प्रथम पूर्णिमा याग करके पूर्ण करे. इन पांच संवत्सर में से दूसरी पर्णिमा की पृच्छा. उतर-जिम देश में मूर्य प्रथम पूर्णिमा योग करके संपूर्ण करे उस स्थान से एक मंडल के २०४ भाग करके उस में अनुक्रम से १४ भाग लेना. यहाँ पर सूर्य दूसरा पूर्णिमा योग करके संपूर्ण दशा पाडका बावीपवा अंतर पाइडा १ अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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