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सप्तदश-चंद्र प्रज्ञाप्ति सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग
देसंसि चंदे पढमं पुराणमासिणं जातेति ता एतेमिणं पुण्णमासिणि ठाणाओ मंडलं एग चउविसेणं सएगछता बत्तसिं भागं उववानिवता तत्थगं से चंदे दृच पुमासिणिणं जोगं जोतेति ॥ता एतेसिणं पंवण्हं संवच्छराणं तच्चं पुण्णमामि चंदे कोस देससि जोगं जोतेति ? ताजसिणं देससि चदे दोच्चं पुणमामिणं जोगं जोनति ता तालि पुण्णमासणीओ ठाणाए मंडलं एगचउविसेणं संतेगच्छेत्ता बत्तीसं भागे उवाणिवेत्ता तत्थगं से चंदे तचं पुण्णमलिणी जागं जोतोते ॥ ता एए सण पचण्ह सवच्छराण दुवालस म पु ण मासिणं चंदे कसि देसान जोगं जे ए ते ता जंसिणं
देसि चदे तच्चं पुण्ण मसिणं जोगं जोएति ता एएसिणं पुण्णमासिणी ठाणभो। से लेा. वहा ही दूसरी पृणमा मंडल के ६४ वे भाग में योग करके संपूर्ण करे. तीसरी पर्णिमा की पृच्छा ? उत्तर-जिस विभाग में दूसरी पूर्णिमा को चंद्रमा योग करके संपूर्ण करे उस स्थान सई एक मंडल के १२४ भाग करके बत्तीस भाग अनुक्रम से लेना. वहां ही चंद्रमा योग करके तीसरी पूर्णिमा पूर्ण करे प्रश्न-अहो भगवन् ! इन पांच संवत्मरों की बारहवी पूर्णिमा किस विभाग में योग करके चंद्रमा पूर्ण करे ? उत्तर-जिम देश में तीसरा माम की पूणमा योग करके संपूर्ण करे उस पूर्णिमा के स्थान से एक मंडल के १२४ भगकरे वैसे २८८ भाग अनुक्रमः से लेना. वहां बारहवा । पणमा संपूर्ण होवे. तीसरी पूणमा से बारहवो पूर्णपा नानी होती है. इस से ३२४९%२८८ भाग
48 दशवा पाहुढे का बाब.सवा अंतर पाहुंडा 48
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