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मत्र
अनवादक-गालब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक पिजी
जाव जाग जाए त तण दुव आभया तहव जाव तत्थ जते णखत्ता जेणं वीम अहोरत्ते तिन्निय मुहुत्ते मरेण साई जोगं जाएति तेण दुवालस संजहा दो उत्तरा - पोट्रवया जाव दो उचारालाढा ॥ ४ ॥ता कहते सीमा आतति वदेज। ॥ ता एतसिणं छपगाए पत्ताणं अस्थिणं नक्वत्ता जेणं णवत्ता छमया तिसस भ ग़। तिसइ भागाणं सीमा विक्खंभो ॥ १ ॥ अस्थि नक्वत्ता जेणं णक्खत्ता
एगेय सहस्तं पच्चुत्तरं सत्त-ट्ठि भागा तिसति भागाणं सीमा विक्खंभो ॥२॥ अस्थि दो अश्विनी, दो कृत्तिका, दो मृाशर, दो पूष्य, दो पूर्वाफ ल्गुनी, दा हस्त, दो चित्रा, से अनुराधा,
, और दो पूर्वाष ढ . और बाद नक्षत्रों वीम अहोरात्र व तीन मुध पर्वत पर्योस.थ योग एक जिन के नाम. १ दो उत्तरामादाद दो रोहिणी, दो पुनःसुदो उत्ता फारशुती, दो विशः वाम
3 और दो उत्तरापाढा. ॥ ४ ॥ अहा भगान् ! मंडल की सीमा के विभपना किस प्रकार नक्षत्र की इसंख्या कही ? उत्तर-इन छप्पन नक्षत्र में ए नक्षत्रों हैं कि नीर के मंडल की बीग का विष्कंभर । उसो तीस भाग मडठीये तीनीय भाग का.किननेक ऐ२ नक्षत्र हैंजिल के मंडल की सापकाविष्का पन १००६ सडसठिये तस ये भाग की हैं, ऐने नक्षत्र हैं कि जिम की सीमा का विष्कंभपना दो।जार । दशसडसठीये तीसये भाग का हैं, और कितनेक नक्षत्र ऐसे भी हैं कि जिसका सीमाविष्वभपाताना
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प्रकाशक-राजाबहादुरूहाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसदा
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